देहरादून। आजाद हिंद फौज के नायक शहीद मेजर दुर्गा मल्ल की जयंती पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस भवन में उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करके अपनी श्रद्धांजलि दी। आजाद हिंद फौज के नायकों में से एक नायक शहीद दुर्गा मल भी थे, जिन्होंने अपनी बहादुरी से इतिहास रचा और देश को गौरवान्वित किया। ऐसे वीर बहादुर योद्धा को हम शत शत नमन करते हैं और उनको अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री नवीन जोशी ने कहा की मेजर दुर्गा मल्ल आजाद हिन्द फौज के प्रथम गोरखा सैनिक थे जिन्होने भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। दुर्गामल्ल का जन्म १ जुलाई १९१३ को देहरादून के निकट डोईवाला गाँव में गंगाराम मल्ल छेत्री के घर हुआ था जो गोरखा राइफल्स में नायब सूबेदार थे। माताजी का नाम श्रीमती पार्वती देवी छेत्री था। बचपन से ही वे अपने साथ के बालकों में सबसे अधिक प्रतिभावान और बहादुर थे। उन्होने गोरखा मिलिटरी मिडिल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा हासिल की, जिसे अब गोरखा मिलिट्री इंटर कॉलेज के नाम से जाना जाता है। दिसम्बर 1941 में जापानियों ने दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में तैनात मित्र सेना पर हमला करके युद्ध की घोषणा कर दी। सन 1931 में मात्र 18 वर्ष की आयु में दुर्गा मल्ल गोरखा रायफल्स की 2/1 बटालियन में भर्ती हो गए। उन्हें संकेत प्रशिक्षण (सिगनल ट्रेनिंग) के लिए महाराष्ट्र भेज दिया गया। लगभग 10 वर्ष तक सेना में सेवारत रहने के पश्चात् जनवरी, 1941 में (युद्ध के लिए विदेश जाने से पूर्व) अपने घरवालों से विदा लेने धर्मशाला गए, और वहीं ठकुरि परिवार की कन्या शारदा देवी के साथ उनका विवाह हुआ। अप्रैल 1941 में दुर्गा मल्ल की टुकड़ी सिकन्दराबाद पहुंची जहां से उसे आगे विदेश रवाना होना था। अपने सैनिक धर्म को निभाते हुए 23 अगस्त 1941 को बटालियन के साथ मलाया रवाना हुए।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये पूर्व राज्य मंत्री मनीष कुमार ने कहा की 8 दिसंबर 1941 को मित्र देशों पर जापान के आक्रमण के बाद युद्ध की घोषणा हो गई थी। इसके परिणामस्वरूप जापान की मदद से 1 सितम्बर 1942 को सिंगापुर में आजाद हिन्द फौज का गठन हुआ, जिसमें दुर्गा मल्ल की बहुत सराहनीय भूमिका थी। इसके लिए मल्ल को मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया। उन्होने युवाओं को आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल करने में बड़ा योगदान दिया। बाद में गुप्तचर शाखा का महत्वपूर्ण कार्य दुर्गा मल्ल को सौंपा गया। 27 मार्च 1944 को महत्वपूर्ण सूचनाएं एकत्र करते समय दुर्गा मल्ल को शत्रु सेना ने मणिपुर में कोहिमा के पास उखरूल में पकड़ लिया। युद्धबंदी बनाने और मुकदमे के बाद उन्हें बहुत यातना दी गई। 15 अगस्त 1944 को उन्हें लाल किले की सेंट्रल जेल लाया गया और दस दिन बाद 25 अगस्त 1944 को उन्हें फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया गया।
श्रद्धांजलि देने वालों में मुख्य रूप से प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री नवीन जोशी, महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा, पूर्व राज्य मंत्री मनीष कुमार, गोरखा प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष अनिल बस्नेत, राजीव थापा ,विजय शाही, गोपाल थापा, दीपक थापा, कविता मेहुल, राजेंद्र धवन, प्रदीप डोभाल, सावित्री थापा, अशोक मल्होत्रा आदि उपस्थित थे।