देहरादून। चिन्हित राज्य आंदोलनकारी संयुक्त समिति उत्तराखंड के केंद्रीय मुख्य संरक्षक व प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप व समिति के केंद्रीय संयोजक व पूर्व राज्य मंत्री मनीष कुमार ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य आंदोलनकारियों के चिह्नीकरण को लेकर जो शासनादेश जारी हुआ है,वह अपूर्ण है। जानबूझकर सरकार ने ऐसा शासनादेश जारी किया, जिससे राज्य आंदोलनकारी जो चिह्नीकरण से वंचित थे, उनका चिह्नीकरण न हो सके। पूर्व में जब कांग्रेस सरकार थी, तब राज्य आंदोलनकारियों का चिन्ही करण समाचार पत्रों की कतरन, खुफिया विभाग एलआईयू की रिपोर्ट व अन्य माध्यमओ से की गई थी। परंतु आज सरकार ने समाचार पत्रों की कतरन के मानक को इस शासनादेश से हटा दिया, जिसके कारण सैकड़ों की संख्या में चिह्नीकरण से वंचित आंदोलनकारी आज भी सड़कों पर अपने अधिकारों के लिए धक्के खा रहे हैं। कोरोना काल में कई आंदोलनकारी जिनका चिह्नीकरण नहीं हुआ था और उन्होंने जिला मुख्यालय मैं अपने आवेदन दे रखे थे दिवंगत हो गए, अब कुछ ही लोग बचे हैं जिनका चिह्नीकरण होना है। परंतु सरकार ने चालबाजी करके जो शासनादेश जारी किया, जिसमें 31 दिसंबर की तिथि अंतिम दी गई है। वह बिल्कुल गलत है एक ही राज्य में चिह्नीकरण को लेकर दो अलग-अलग कानून कैसे हो सकते हैं। यह सरासर गलत है और राज्य आंदोलनकारियों के हितों पर कुठाराघात है। भाजपा की राज्य सरकार ने पोने 5 साल तक तो कुछ नहीं किया और अब एक शासनादेश लाए भी वह भी आधा अधूरा। जान जानबूझकर इन्होंने ऐसा शासनादेश जारी किया है ताकि जो वंचित आंदोलनकारी हैं उनका चिह्नीकरण ना हो सके राज्य आंदोलनकारी इस शासनादेश का विरोध करते हैं। और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से तत्काल यह मांग करते हैं कि वह इस शासनादेश को ठीक करें और नया शासनादेश जारी करें। जिसमें समाचार पत्रों की कतरनों को मान्यता दी जाए। ऐसा ना करने की स्थिति में राज्य आंदोलनकारी शासनादेश के विरुद्ध आंदोलन करेंगे। आज आंदोलनकारियों की वजह से राज्य बना, सरकार बनी, नेता विधायक सांसद बने यह लोग उन्हीं का शोषण करने में लगे हुए हैं। प्रदेश की जनता इन्हें इसके लिए कभी भी माफ नहीं करेगी।