देहरादून। हमारे उत्तराखंड में बेरोजगारी एवं पलायन के ऊपर अगर ध्यान ना दिया गया तो यह आने वाले भविष्य के लिए एक बहुत बड़ा संकट साबित हो सकता है। जैसा कि हम सब देख सकते हैं हमारे पहाड़ों में बड़ी संख्या में गांव खाली हो रहे हैं और लोग पलायन कर रहे कर रहे हैं अगर यह निरंतर कुछ सालों तक चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं है जब पहाड़ों के गांव में कोई नहीं बचेगा। पहाड़ों से पलायन रोकने के लिए हमें वहां पर स्वरोजगार को विकसित करना होगा। हमारी उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति अपनी पूरी शिद्दत के साथ पलायन रोकने का काम कर रही है और प्रयास कर रही है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को पलायन करने से रोका जाए एवं उन्हें अपने गांव और घरों में ही रोजगार का एक ऐसा साधन विकसित कर दिया जाए जहां पर वे अपना जीवन यापन अच्छे से कर सके और अपने गांव घर को छोड़कर ना जाएं।
हमे यह सुनिश्चित करना है कि कोई एक ऐसा स्वरोजगार का मॉडल विकसित किया जाए जिससे सभी लोगों को रोजगार मिले। उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति अपने “उत्तराखंड बचाओ अभियान के तहत पूरे प्रदेश में युद्ध स्तर पर लोगों को व्यवसायिक खेती के लिए जागरूक कर रहा है और प्रदेश के किसान भाइयों एवं महिलाओं को रोजगार देने के लिए उन्हें हर तरह की मदद मुहैया कर रहा है।
जैसा कि हम जानते हैं हमारे उत्तराखंड की जो उपजाऊ भूमि है उसमें अब हमें पारंपरिक खेती के साथ-साथ व्यवसायिक दृष्टि से भी खेती करनी होगी ताकि हमारे किसान भाइयों को उनके उत्पाद का अधिक मूल्य मिल सके एवं उस उत्पाद को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाया जा सके।
व्यवसायिक खेती के रूप में अगर हम बात करें तो हमारे उत्तराखंड के पास अपार संभावनाएं हैं, हमें अब पारंपरिक खेती का जो प्रतिशत है उसमें व्यवसायिक खेती को थोड़ा ज्यादा महत्व देना होगा जिससे हम गेहूं, चावल, दाल एवं हरी सब्जी के साथ साथ मशरूम एवं मसालों की खेती अत्यधिक मात्रा में कर सके एवं निर्धारित भूमि में ही हम अधिक लाभ ले सके।
उत्तराखंड के किसानों के लिए मशरूम की खेती बहुत ही लाभकारी होने जा रही है एवं भविष्य में इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिससे किसानों का आय भी दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाएगी। उत्तराखंड के सभी छोटे बड़े शहरों में खाने के प्रति लोगों का रुझान बढ़ रहा है एवं कई ऐसे मल्टी नेशनल फूड-चैन स्टोर उत्तराखंड के सभी शहरों में खोले जा रहे हैं जिन्हें मशरूम की अत्यधिक आवश्यकता हो रही है, साथ ही साथ होमस्टे के किचन एवं रेस्टोरेंट में बाहर के पर्यटकों के आने की वजह से मशरूम की मांग बढ़ रही है। वही परदेस में अगर कोई भी सामाजिक समारोह हो जैसे शादी विवाह एवं अन्य कोई बड़ा आयोजन जिसमें मशरूम के कई प्रकार के व्यंजन परोसे जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड में मशरूम की पारंपरिक आचार की भी मांग काफी बढ़ चुकी है। इन सभी बिंदुओं पर गौर किया जाए तो हम यह देख सकते हैं कि मशरूम की खेती से जुड़े हुए किसानों के लिए आने वाला भविष्य सुनहरा होगा। वही मसालों की बात करें तो उत्तराखंड के अंदर हल्दी, धनिया, अदरक, बड़ी इलायची, काला जीरा, तेजपत्ता एवं वन तुलसी का उत्पादन हो रहा है। इन सभी उत्पादों का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है, अगर हमारे उत्तराखंड के किसान भाई अपने खेतों में मसालों की अधिक उत्पाद कर सके तो उन्हें आय का एक अन्य स्रोत मिल सकता है। इन मसालों के साथ-साथ अन्य जड़ी बूटी की भी खेती की जा सकती है तथा उससे अच्छा लाभ लिया जा सकता है।
उत्तराखंड में सेब की खेती के लिहाज से देखें तो उत्तरकाशी, चकराता और चमोली हमारे पास सर्वोत्तम जगह उपलब्ध है। इन जगहों पर हम सेब के साथ-साथ अखरोट, बेर, आडू, चेरी एवं नाशपाती का भी फसल ले सकते हैं। परंतु उत्तराखंड में खपत के हिसाब से इन सभी फलों की खेती पर्याप्त मात्रा में नहीं हो पा रही है! वही हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर से फलों का आयात किया जा रहा है। जिससे उत्तराखंड के लोगों को फलों की पर्याप्त कीमत से ज्यादा भाव देने पर रहे हैं। अगर इन तमाम फलों की खेती हम उत्तराखंड में करें तो इसके लिए हमारे पास मौजूदा बाजार भी उपलब्ध है और हमारी खपत भी इतनी है कि हमारी फलों के आपूर्ति किसान भाई उत्तराखंड में अच्छे से कर सकते हैं।
उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के माध्यम से फलों के उत्पादन करने वाले किसान के लिए एक अच्छे वेयरहाउस की व्यवस्था की जा रही है एवं उन्हें अपने फलों को लंबे समय तक रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाएगी। किसान चाहे तो वे अपने क्षेत्र में ही इन तमाम व्यवस्थाओं का लाभ ले सकते हैं एवं अपने फलों को पर्याप्त कीमत पर बाजार में बेच सकते हैं।
उत्तराखंड में फलों की खेती के माध्यम से स्वरोजगार को बहुत बढ़ावा दिया जा सकता है अगर किसान भाई उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के साथ जुड़कर अपने फलों की खेती करते हैं तो उन्हें ना फलों की स्टोरेज करने की दिक्कतें होगी ना ही फलों की मार्केटिंग करने में उन्हें दिक्कत आएगी। उनका उत्पादन सीधे बड़े बाजार में चला जाएगा और उन्हें पर्याप्त कीमत भी मिलेगी जिससे उनकी आय में अच्छी खासी बढ़ोतरी हो सकती है।
उत्तराखंड में देखा जाए तो चाय पत्ती के उत्पादन में बहुत पीछे हैं। उत्तराखंड में चाय की खेती के प्रति किसानों को अभी तक ज्यादा प्रोत्साहित नहीं किया गया है। परंतु उत्तराखंड के कुछ जगहों पर जैसे अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, चमोली, नैनीताल, पिथौरागढ़ और रुद्रप्रयाग जैसे कुछ जगह है जहां पर थोड़ा बहुत चाय का उत्पादन किसान कर रहे हैं। भारतवर्ष में चाय के मांग को देखें तो हर घर में इसकी आवश्यकता प्रतिदिन दो से चार बार होती है इस लिहाज से अगर कोई भी किसान चाय की खेती में आता है तो उसे एक बड़ा बाजार मिल ही जाता है, जहां पर वह अपने उत्पादन को बेच सकता है। उत्तराखंड के चाय की खूबसूरती हम इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे प्रदेश में ऑर्गेनिक टी और नन -ऑर्गेनिक टी दोनों पर्याप्त मात्रा में लोगों के बीच प्रसिद्ध है। उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति से जुड़े हुए किसान अगर इसकी खेती करते हैं तो उन्हें एक अच्छे मार्केटिंग की भी व्यवस्था की जाएगी और जरूरत पड़ने पर अन्य चाय उत्पादन क्षेत्रों से विशेषज्ञों द्वारा ट्रेनिंग कराई जा सकती है ताकि उत्तराखंड के स्थानीय चाय उत्पादक किसानों को अच्छा लाभ मिले। वहीं अगर कोई व्यक्ति लघु एवं कुटीर उद्योग के माध्यम से चाय उत्पादन के प्रोडक्शन यूनिट या प्रोसेसिंग प्लांट लगाना चाहता है तो उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति उन्हें हर तरह से सहयोग करने के लिए तत्पर है चाहे उन्हें लोन की आवश्यकता हो, कोई ट्रेनिंग की आवश्यकता हो या फिर कोई प्रोजेक्ट अप्रूवल सपोर्ट की जरूरत हो, इन तमाम आवश्यकताओं के साथ उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति उन व्यक्तियों को मदद करने के लिए हमेशा तैयार है जो चाय उत्पादन के लिए प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहता है।
उत्तराखंड के स्टार्टअप और इन्नोवेटर एंटरप्रेन्योर्स को कोई भी मदद चाहिए तो उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति उस व्यक्ति के साथ हमेशा खड़ा रहेगा और उनके आवश्यकता अनुसार मदद की जाएगी। अगर किसी किसान भाइयों को अपने उत्पाद को रखने के लिए वेयरहाउस की दिक्कतें हो या फिर कोल्ड स्टोरेज की सुविधा मुहैया कराना हो, उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति अपने नेटवर्क के माध्यम से प्रदेश के हर जिले में वेयरहाउस और कोल्ड स्टोरेज की समस्याओं को दूर करेगा साथ ही साथ अगर किसी किसान भाई को उनके उत्पाद की मार्केटिंग करनी हो तो उसके लिए भी समिति के सदस्य मार्केटिंग की सुविधा मुहैया कराएंगे। वहीं दूसरी ओर लघु एवं कुटीर उद्योग से जुड़े हुए व्यक्ति को कोई सरकारी क्लीयरेंस की समस्या हो या फिर वित्तीय समस्या हो, समिति के लोग इन समस्याओं को दूर करेंगे। यदि जरूरत हुई तो सभी किसान भाई एवं स्टार्टअप से जुड़े हुए लोगों के लिए उनके क्षेत्र से जुड़े ट्रेनिंग भी दिलाई जाएगी ताकि उनका जो भी व्यवसाय है उसमें अपना लक्ष हासिल कर सके। लेखक जगदीश भट्ट उत्तराखंड के एक जाने माने एंटरप्रेन्योर है एवं उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के महासचिव हैं।