ऋषिकेश। भारत के 14 वें राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने सपरिवार परमार्थ निकेतन गंगा आरती में सहभाग किया।
माँ गंगा के पावन तट से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी के सान्निध्य में सभी ऋषिकुमारों और श्रद्धालुओं ने ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस और मालगाड़ी के बीच हुये दर्दनाक हादसे में जिन यात्रियों की मृत्यु को गयी उनकी आत्मा की शान्ति हेतु दो मिनट का मौन रखा तथा घायल हुये यात्रियों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रार्थना की गयी।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने ओडिशा हादसे पर दुःख व्यक्त करते हुये कहा कि ये घटनायें हमें बताती है कि जीवन का कोई भरोसा नहीं है। कोविड ने हमें बताया और दिन-प्रति-दिन कुछ न कुछ घटते रहता है इसलिये जब भी मिले, जिससे भी मिले दिल खोल कर मिले, न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाये।
माँ गंगा से प्रार्थना कि जो इस हादसे से प्रभावित हुये हैं उन सब को प्रभु शक्ति और संबल प्रदान करना। आज की गंगा आरती इस हादसे के पीड़ितों को समर्पित की गयी।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पूरे विश्व में उत्तराखंड की धरती एक ऐसी धरती है जहां पर हिमालय भी है और गंगा भी है वास्तव में यह धरती स्विट्जरलैंड भी है और स्पिरिचुअललैंड भी है और इस धरती पर जीवन का संगम भी होता है। यहां पर भीतर का पर्यावरण भी शुद्ध होता है और बाहर का पर्यावरण भी शुद्ध होता है। यह धरती भीतर के सौन्दर्य का दर्शन करती है। हमारे ऋषियों ने हमें विचारों की वैक्सीन प्रदान की। यह देश ऐसा है जो सब को अपना मानता है। हमारे थाट्स ही हमारे डेस्टिनेशन का टिकिट है। अपने घरों और जीवन को मन्दिर बनाने का संदेश दिया।
माननीय श्री रामनाथ कोविंद जी ने कहा कि माँ गंगा के पावन तट पर आयोजित वर्षो से चली आ रही यह परम्परा गंगा आरती आज संयोग है कि आज इस गंगा आरती के 25 वर्ष पूरे हुये इस निरंतरता को जारी रखने का श्रेय यदि किसी को जाता हैं तो स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी को जाता है। आज मेरे पास शब्द नहीं है कि उनके कार्यो की प्रशंसा कंरू। देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं यही उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
माँ गंगा के बिना भारत का अस्तित्व नहीं है, भारत और गंगा एक दूसरे के पूरक हैं। माँ गंगा भारत की पहचान है। भारत के बारे में कुछ स्वभाव और प्राकृतिक रूप से ही हम अलग प्रकार के लोग हैं, हमारी सोच जिओ और जीने दो, वसुधैव कुटुम्बकम् ही हैं और यही हमारी पहचान भी है। गंगा को हम माँ कहते हैं, मैं गंगोत्री तक गया माँ गंगा का उदगम देखा फिर आगे बढ़ते हुये उनकी सहयोगिनी नदियां उनमें मिलती है। गंगा जी की यात्रा का वर्णन करते हुये कहा कि गंगा जी का स्वरूप वात्सल्य से युक्त है। करोड़ों भारतीयों की आजीविका माँ गंगा से जुड़ी हुयी है। माँ गंगा की विशेषता उनकी निरंतरता और अविरलता है। माँ गंगा में सब नदियां मिलती चली गयी परन्तु गंगा जी ने अपना चरित्र नहीं बदला वही भाव और गुण भारत को भी अपनाना होगा। किसी नदी को माँ केवल भारत में ही कहते हैं हम तो धरती को जिस देश में हम रहते उसे माँ कहते है यह केवल भारत की विशेषता है।
पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर एक बात कहना चाहता हूँ की माँ गंगा से बड़ा कोई गुरू नहीं हो सकता क्योंकि माँ गंगा की निरंतरता तीनों युगों से चली आ रही है। हमें प्रकृति और गंगा जी से निरंतरता का मंत्र स्वीकार करना है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी ने विश्व पर्यावरण दिवस की पूर्व संध्या पर सभी को पर्यावरण और जल संरक्षण का संकल्प कराया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने गंगा जी के पावन तट से सभी अतिथियों को हिमालय की हरित भेंट रूद्राक्ष का पौधा भेंट किया।
