देहरादून। 16 दिसंबर ही वह दिन था, जब पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने करीब 90 हजार सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जसजीत अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर हथियार डाल दिए थे। जनरल नियाजी के आत्मसमर्पण करने के साथ ही यह युद्ध भी समाप्त हो गया। इस दौरान जनरल नियाजी ने अपनी पिस्तौल जनरल अरोड़ा को सौंप दी। देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में रखी जनरल नियाजी की पिस्तौल आज भी भावी सैन्य अफसरों में जोश भरने का काम करती है। यूं तो भारतीय सेना का गौरवशाली इतिहास हमेशा से ही युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है। आइएमए के म्यूजियम में रखीं 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध की ऐतिहासिक धरोहर और दस्तावेज भी युवा अफसरों को अपने गौरवशाली इतिहास और परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा देते हैं। ईस्टर्न कमांड के जनरल आफिसर कमांडिंग ले. जनरल अरोड़ा ने यह पिस्तौल आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष 1982 में आइएमए को प्रदान की। इसी युद्ध से जुड़ी दूसरी वस्तु एक पाकिस्तानी ध्वज है, जो आइएमए में उल्टा लटका हुआ है। इस ध्वज को भारतीय सेना ने पाकिस्तान की 31 पंजाब बटालियन से सात से नौ सितंबर तक चले सिलहत युद्ध के दौरान कब्जे में लिया था। जनरल राव ने आइएमए के गोल्डन जुबली वर्ष में यह ध्वज अकादमी को प्रदान किया। 1971 में हुए युद्ध की एक अन्य निशानी जनरल नियाजी की काफी टेबल बुक भी आइएमए की शोभा बढ़ा रही है। यह निशानी कर्नल (रिटायर्ड) रमेश भनोट ने जून 2008 में आइएमए को सौंपी थी।