देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में चुनावी बिगुल बजने से पहले ही भाजपा व कांग्रेस दोनो में चुनाव लडने की जिज्ञासा पालने वाले नेता अपनी-अपनी विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय हो गए। जमकर बैठकों के दौर चलाए जनता की हर समस्या का समाधान करने के वायदे तक कर डाले। जनसंपर्क अभियान में दिन रात जुटे रहे। क्षेत्रवासियों से दावा किया कि चुनाव जीतते ही विधानसभा में क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने के लिए आवाज बुलंद करेंगे। पार्टी स्तर पर जो कार्यक्रम आयोजित होते उसमें भी जमकर शक्ति प्रदर्शन करते। तमाम दबाव बनाकर किसी भी तरह टिकट पाने की होड में जुटे रहे। खुद को पार्टी का सच्चा सिपाही बताने तक में पीछे नही हटे। पार्टी के लिए सदैव समर्पित रहने के दावे तक किए गए लेकिन यह तमाम दावे उस समय धाराशाही हो गए जब पार्टी ने अपने अधिकृत प्रत्याशियों की सूची जारी की, जो कल तक खुद को सच्चा सिपाही बताते थे वह अस्तिने चढाकर पार्टी प्रत्याशी के सामने डटकर खडे हो गए और आवाज बुलंद की कि टिकट नही तो निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरा जाएगा और पार्टी के प्रत्याशी को भारी बहुमत से हराया जाएगा। इसमें न ही भाजपा के नेता पीछे रहे और न ही कांग्रेस के। दोनो ही पार्टियो में बगावत करने वालो की सूची लम्बी चैडी है। कुछ ऐसे चेहरे भी हैं जो अपने दर्द को दिल में छिपाये बैठे हैं। उनका मन केवल यही बोल रहा है कि टिकट न सही लेकिन पार्टी प्रत्याशी को जीतने भी नही देंगे। सेंधमारी तो अपने हाथ में है। टिकट हमे न सही लेकिन दूसरे को भी क्यों जीतने दें। चुनाव तो पांच साल बाद दोबारा आने हैं। तब तो पार्टी टिकट दे ही देगी।
बहराल किसे टिकट मिले और किसे नही यह तो पार्टी हाईकमान के विवेक पर निर्भर होता है। बात चली है तो क्यों न उन चेहरो पर भी चर्चा कर ली जाए जो किसी न किसी कारण अपनी निष्ठा विपक्षी पार्टियों पर ज्यादा दिखा चुके हैं निष्ठा भी ऐसी की जिस पार्टी के लिए पूर्ण रूप से समर्पित थे उसे छोडने में वक्त न लगाया। विधानसभा चुनाव जीतने और विधायक बनकर विधानसभा की सीढी चलने की तमन्ना रखने वाले यह भी भूल गए कि जिस पार्टी ने पाचं साल तक मान सम्मान पद प्रदान किया उसे आखिर उन पांच सालो के लिए छोडना पड रहा है जो चुनाव जीतने के बाद यह भी गारंटी नही देता कि सत्ता में आयेगे या विपक्ष में बैठना पडेगा। जो चेहरे पार्टी को अलविदा कह चुके हैं उनमें मुख्य रूप से यशपाल आर्य, हरक सिंह रावत, सरिता आर्य प्रमुख रूप से शामिल हैं। हरक सिंह रावत वही व्यक्ति हैं जो हरीश रावत सरकार में बगावत कर अपने साथियों के सथ बजट सत्र में भाजपा में शामिल हो गए थे और चिल्ला चिल्लाकर रावत सरकार को अल्प मत में होने का दावा करते रहे। उनकी निष्ठा अचानक भाजपा के प्रति बढ गयी थी लेकिन अब अपने साथ-साथ अपनी बहु के लिए टिकट की बात नही बनी तो भाजपा से निष्ठा समाप्त हो गयी और कांग्रेस के प्रति पे्रम बढ गया। कुछ ऐसा ही यशपाल आर्य के साथ भी हुआ था भाजपा सरकार में पांच साल मंत्री रहे, लेकिन जब अपने व अपने बेटे के लिए टिकट की बात नही बनी तो उन्होने भी कांग्रेस का रूख कर लिया। आज कांगे्रस ने बाप-बेटे को टिकट भी प्रदान कर दिया। वहीं सरिता आर्य पांच साल तक उत्तराखण्ड महिला कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा रही लेकिन जब उन्हें कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो उन्होने भी अपनी निष्ठा बदल दी। उनके विचार भाजपा से मेल खा गए और उन्होने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। भाजपा ने भी अपना वायदा निभाया और सरिता आर्य को चुनाव मैदान में उतार दिया। उनका मुकाबला कांग्रेस से संजीव आर्य से है। वक्त बतायेगा कि किसके सिर जीत का ताज सजता है। आज ही एक और बडा घटनाक्रम हुआ। लालकुंआ विधानसभा सीट पर जब कांगे्रस ने तिवारी सरकार में मंत्री रहे हरीश दुर्गापाल को टिकट नही दिया तो उन्होने भी बगावत का झंडा बुलंद कर लिया। बंदूक कार्यकर्ताओ के कंधे पर रखी गयी और कहा गया कि कार्यकर्ता चहाते हैं कि चुनाव मैदान में उतरा जाए। चाहे इसके लिए पार्टी ही क्यों न छोडनी पडे। कार्यकर्ताओ के प्यार के आगे पार्टी निष्ठा भी ज्यादा समय टिक न पायी। हरीशचंद्र दुर्गापाल ने कांग्रेस को अलविदा कहने का ऐलान करते हुए निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर डाली है। एक रात पहले ही कांग्रेस पार्टी ने अपनी दूसरी सूची जारी की जिसमें लालकुंआ से महिला प्रत्याशी के रूप में संध्या डालाकोटी को चुनाव मैदान में उतारा है। सूची जारी होते ही हरीश चंद्र दुर्गापाल के घर पंचायत जुड गयी। पूरी रात कांग्रेस को कोसने में बीत गयी। सुबह सवेर जब अधिकृत प्रत्याशी संध्या डालाकोटी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश चंद्र दुर्गापाल का आर्शीवाद लेने उनके घर पहुंची तो नाराज कार्यकर्ताअेा ने घर का द्वार मुंह पर बंद कर दिया उन्हें भीतर तक आने नही दिया गया। घर की बात सडक पर आ गयी। आर्शीवाद नही मिला तो कांग्रेस प्रत्याशी घर के बाहर ही सडक पर डेरा जमार बैठ गयी। उनकी जिद थी कि वह आर्शीवाद लेकर जायेगी, लेकिन उन्हें कोसो अनुमान नही था कि वह जिन से वह आर्शीवाद लेने आयी है वही उनके खिलाफ बगावत का बिगुल फूंककर चुनाव मैदान में उन्हें हराने के लिए उतरने वाले हैं। अब देखना यह है कि जिन कार्यकर्ताओ के दम पर हरीश चंद्र दुर्गापाल ने निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान किया है वह उनके सिर जीत का ताज सजवाते हैं या फिर उनकी एक बार फिर कांग्रेस छोडने की भूल के रूप में यह दूसरी गलती हो जाएगी। इससे पहले भी वह कांग्रेस छोडकर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे भला हो विधानसभा की जनता को जिन्होने उन्हें जीत दिलाकर विधानसभा भेजा और पं. तिवारी ने उन्हें कांगे्रस में शामिल कर उन्हें अपने मंत्रीमण्डल में जगह दी। वहीं अब राजधानी देहरादून की राजपुर विधानसभा सीट पर भी कांग्रेस में बगावत बुलंद होने लगी है। मदनलाल कल तक कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडने का मन बनाए बैठे थे लेकिन पार्टी ने यहां दूसरे व्यक्ति को टिकट दे दिया अब उन्होने भी आस्तिने चढा ली हैं। मदन लाल भी ऐलान कर चुके हैं कि वह निर्दलीय प्रत्यशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरेंगे। वहीं भाजपा भी बागियो से बची हुयी नही है। कल तक कट्टर भाजपाई माने जाने वाले अमर सिंह स्वेडिया ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में राजपुर से नामांकन कर दिया है। यहां भाजपा ने अपने सिटिंग एमएलए को पुनः चुनाव मैदान में उतारा है। वही अभी कई और ऐसे पत्ते हैं जिनके खुलने का इंतजार है। भाजपा में भी नाराज दावेदारो की सूची लंबी चैडी है। अभी 31 जनवरी तक नामांकन होना है तब तक न जाने कितने और रूढे निर्दलीय चुनाव लडने की ताल ठोककर चुनाव मैदान में नजर आयेंगे।