रुड़की, – इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की के शोधकर्ताओं ने 3D स्ट्रक्चर के एक ऐसे बैक्टीरियल एंजाइम की खोज की है जो प्लास्टिक को तेज़ी से ब्रेक डाउन करने में सहायता करता है। यह खोज प्रोफेसर प्रविंद्र कुमार के नेतृत्व में आईआईटी रुड़की के बायोसाइंसेस और बायोइंजीनियरिंग विभाग के पांच अन्य सहयोगियों द्वारा की गई।इस टीम ने उन सभी एंजाइम्स की खोज की जो थैलेट और टेरेफ्थैलेट से कॉमामोनस स्टेटोस्टेरॉन, एक तरह का माइक्रोव KF1, जो प्लास्टिक्स और प्लास्टिसाइज़र्स को तेज़ी से डिग्रेट करेगा, जिन्हें गैर- बायोडिग्रेडेबल माना जाता है।आईआईटी रुड़की के बायो साइंसेस और बायो इंजीनियरिंग के प्रोफेसर प्रविंद्र कुमार ने अवगत करवाया, – ” सारे संसार में प्लास्टिक से हो रहा प्रदूषण एक ज्वलंत विषय है, हाल ही में एंजाइम डिग्रेडींग पॉलीथिलीन, टेरेफ्थैलेट, जो कि एक तरह का प्लास्टिक है, को टेरेफ्थैलेट (TPA) में बदलने से इस समस्या के समाधान की उम्मीद बंधी है। गत दशक में हुए अनुसंधान से ये खोज हुई है कि टेरेफ्थैलेट डाइऑक्साइडजिनेस (TPDO) को (TPA) का एंजाइमेटिक डिग्रेडेशन करके कुछ ग्राम नेगेटिव और ग्राम पॉजिटिव बैक्टीरिया बनते हैं। इसलिए इसके आधार पर अनुसंधानकर्ता टीम सदस्यों द्वारा निर्णय लिया गया कि (TPDO) का क्रिस्टल स्ट्रक्चर कॉमामोनस स्टेटोस्टेरॉन KF1 है और यह निष्कर्ष निकाला कि यह एंजाइम गैर बायो डिग्रेडेबल को भी डिग्रेड करने में भी सहायक हो सकता है”।
थैलेट, ऐसा पदार्थ है जो कि जीवित वस्तुओं में एंडोक्राइन सिस्टम को रोकता है, और प्लास्टिक में जो पोटेंशियल कार्सीनोजन पाया जाता है वह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया से डिग्रेड होता है।
यह डिग्रेडेशन थैलेट डाइऑक्सीजिनेस (PDO), जो कि एक रीस्क ऑक्सीजिनेस (RO) है जो डायहाइड्रोएक्सीलेशन के रिएक्शन को बढ़ाता है। इसके अतिरिक्त ROs उस एंजाइम परिवार के हैं जो कि टॉक्सिक ऐयरोमेटिक कंपाउंड को रिजियो और स्टीरियो स्पेसिफिक सिस – डायहाइड्रोएक्सीलेशन के माध्यम से बढ़ाता है, इसलिए गंभीर अनुसंधान के लिए विशेष ध्यान दिया गया है क्योंकि टॉक्सिक एयरोमेटिक कंपाउंड के बायो डिग्रेडेशन में प्रयुक्त होता है।
अपनी खोज के बारे में विस्तार से बताते हुए आईआईटी रुड़की के डायरेक्टर प्रोफेसर अजीत के चतुर्वेदी ने बताया- ” टॉक्सिक थैलेट पर्यावरण के लिए हानिकारक हैं। इन अध्ययनों से मिले परिणामों से एक प्रदूषक एंजाइम को डिग्रेड करने के बारे में पता चला। इन परिणामों से एंजाइम की इंजीनियरिंग, इसके बायो रेमेडियेशन और बायो कैटेलाइटिक में प्रयुक्त होने का पता चलता है”।
थैलेट डाइऑक्सीजिनेस में हुए अध्ययनों को ‘ जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमेस्ट्री’ में प्रकाशित किया गया है, जबकि टेरेफ्थैलेट डाइऑक्साइडजिनेस को ‘जर्नल ऑफ बेक्टीरियोलॉजी’ के फरवरी अंक में प्रकाशित किया जाएगा।
इस अनुसंधान के प्रमुख लेखक श्री जय कृष्ण महतो हैं तथा अन्य वैज्ञानिक सुश्री नीतू, सुश्री मोनिका शर्मा, श्री भैरव नाथ वाघमोडे, सुश्री मोनिका दुबे, प्रोफेसर बी पी वेलंकी, प्रोफेसर देवव्रत सरकार, प्रोफेसर ए के शर्मा एवं प्रोफेसर शैली तोमर ने भी इस टीम के सदस्यों के रूप में महत्वपूर्ण भागीदारी की।