देहरादून। अग्रवाल समाज देहरादून का होली मिलन समारोह 13 मार्च को अग्रवाल धर्मशाला में मनाया जाएगा। महामंत्री संजय गर्ग ने बताया कि कलाकारों द्वारा होली गीतों पर रंगारंग प्रस्तुति भी देखने को मिलेगी। सांस्कृतिक समारोह के बाद फूलों की होली खेली जाएगी।
उधर, अखिल भारतीय मारवाड़ी महिला सम्मेलन की अध्यक्ष रमा गोयल ने बताया कि होली से पहले काफी संगठनों के कार्यक्रम को देखते हुए उन्होंने 20 के बाद समारोह मनाने का निर्णय लिया है।
वहीं देहरादून लेड़ीज क्लब (वेस्ट) नौ मार्च को होली मिलन समारोह मनाएगा। इसमें होली क्वीन समेत विभिन्न प्रतियोगिता होंगी। क्लब की एसोसिएट सदस्य डेजी मित्तल ने बताया कि होटल सिटी स्टार में होने वाले इस समारोह में सभी सदस्य होली गीतों पर प्रस्तुति देंगी।
कूर्मांचल सांस्कृतिक एवं कल्याण परिषद की सभी शाखा 13 मार्च को जीएमएस रोड स्थित कूर्मांचल भवन में होली मिलन समारोह मनाएगा। परिषद के अध्यक्ष कमल रजवार ने बताया कि कुमाऊं की होली जो विशेष रूप से अपनी बैठकी व खड़ी होली के लिए प्रसिद्ध है। समारोह में इसकी झलक देखने को मिलेगी।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की होली का त्योहार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस बार होली 18 मार्च को मनाई जाएगी। होली से 8 दिन पहले ही होलाष्टक होलाष्टक लग जाता है। 10 मार्च से होलाष्टक लगेगा। इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है।
होलिका दहन पूजा सामग्री :- एक लोटा जल, गाय के गोबर से बनी माला, अक्षत, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां।
होलिका दहन बृहस्पतिवार, मार्च 17, 2022 को
होलिका दहन मुहूर्त – 09:06 शाम से 10:16 शाम
अवधि – 01 घण्टा 10 मिनट्स
रंगवाली होली शुक्रवार, मार्च 18, 2022 को
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 17, 2022 को 01:29 शाम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 18, 2022 को 12:47 शाम बजे
होलिका दहन हिन्दु मध्य रात्रि के बाद
वैकल्पिक मुहूर्त- हिन्दु मध्य रात्रि के बाद – 01:12 सुबह से 06:28 सुबह, मार्च 18
अवधि – 05 घण्टे 16 मिनट्स
कैसे करें होलिका पूजा :-
सभी पूजन सामग्री को एक थाली में रख लें साथ में जल का लोटा भी रखें।
पूजा स्थल पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं. उसके बाद पूजा थाली पर और अपने आप पानी छिड़कें और ‘ऊँ पुण्डरीकाक्ष: पुनातु’ मंत्र का तीन बार जाप करें।
अब अपने दाएं हाथ में जल, चावल, फूल और एक सिक्का लेकर संकल्प लें।
फिर दाहिने हाथ में फूल और चावल लेकर गणेश जी का स्मरण करें।
गणेश पूजा के बाद देवी अंबिका का स्मरण करें और ‘ऊँ अम्बिकायै नम: पंचोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पाणि सर्मपयामि’ मंत्र का जाप करें।
मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर देवी अंबिका को सुगंध सहित अर्पित करें।
इसके बाद अब भगवान नरसिंह का स्मरण करें. मंत्र का जाप करते हुए फूल पर रोली और चावल लगाकर भगवान नरसिंह को अर्पित करें।
इसके बाद अब भक्त प्रह्लाद का स्मरण करें. फूल पर रोली और चावल लगाकर भक्त प्रह्लाद को चढ़ाएं।
अब होलिका के आगे खड़े हो जाएं और अपने हाथ जोड़कर प्रार्थना करें। होलिका में चावल, धूप, फूल, मूंग दाल, हल्दी के टुकड़े, नारियल और गाय के गोबर से बनी माला जिसे बड़कुला या गुलारी भी कहते हैं होलकिा में अर्पित करें।
अब होलिका की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत की तीन, पांच या सात फेरे बांधे। इसके बाद होलिका के ढेर के सामने लोटे के जल को पूरा अर्पित कर दें।
इसके बाद होलिका दहन किया जाता है। लोग होलिका के चक्कर लगाते हैं। जिसके बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है। लोग होलिका की परिक्रमा करते हैं और अलाव में नई फसल चढ़ाते हैं और भूनते हैं. भुने हुए अनाज को होलिका प्रसाद के रूप में खाया जाता है।
धार्मिक और सामाजिक एकता के इस पर्व होली के होलिका दहन के लिए चौराहे, गली मोहल्लों में लकडिय़ों से होली सजाने की तैयारी हो शुरू हो गई है। होलिका पूजन 17 को होगा। वहीं बाजारों पर भी होली का रंग चढऩे लगा है। दुकानों में रंग, पिचकारी व अन्य सामान सजने शुरू हो गए हैं। दुकानदारों की मानें तो 10 मार्च के बाद एक हफ्ते तक पूरे बाजार सज जाएंगे।
होलिका दहन कैसे किया जाता है :- होलिका दहन वाले स्थान पर कुछ दिन पहले एक सूखा पेड़ रखा जाता है। होलिका दहन के दिन उस पर लकड़ियां, घास और गोबर के उपले रखकर आग लगाते हैं। होलिका दहन में शुभ मुहूर्त का विशेष महत्व है। होलिका दहन को छोटी होली भी कहा जाता है। इसके अगले दिन एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर होली का त्योहार मनाया जाता है।
होलिका दहन कथा:- एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान के अनन्य भक्त थे। उनकी इस भक्ति से पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे। इसी बात को लेकर उन्होंने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भक्त प्रह्लाद प्रभु की भक्ति को नहीं छोड़ पाए। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए योजना बनाई। अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। लेकिन भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद आग से सुरक्षित बाहर निकल आए, तभी से होली पर्व को मनाने की प्रथा शुरू हुई।