देहरादून, 18 अप्रैल। विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के तीसरे दिन की शुरुआत “कॉलोनियल एंड अफगान लिंक हेरिटेज वॉक’ के साथ शुरू हुआ, जिसमें गांधी पार्क से लेकर एस्लें हॉल, क्लॉक टावर, सैंट फ्रांसिस चर्च और रेंजर्स कॉलेज तक कि दुरी तय कि गई। सुबह 7 बजे इस वॉक में लगभग 5 किलोमीटर का सफर तय किया गया एवं इन सभी स्थानों के बारे में वॉक कर रहे लोगों को वहां के इतिहास और सभ्यता के बारे में विस्तार पूर्वक बताया गया। वॉक लीडर ने दून के प्रतिष्ठित क्लॉक टावर के बारे में रोचक तथ्य बताएं जो दुनिया का एकमात्र छह-मुख वाला क्लॉक टावर है। इस कॉलोनियल एंड अफगान लिंक हेरिटेज वॉक’ में लगभग 90 से अधिक लोगों ने प्रतिभाग किया। सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं उत्तर भारत के युवा वायलिन वादक संतोष कुमार नाहर ने शास्त्रीय संगीत ’हिंदुस्तानी शैली’ पर अपनी प्रस्तुति दी। जिसमें संतोष कुमार नाहर वायलिन और बाबा भादकर नाथ शहनाई पर जुगलबंदी प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया। संतोष कुमार नाहर ने अपनी मधुर स्वर शैली ’गायकी’ को ‘तांत्रिक’ शैली से जोड़कर अपनी गायकी एवं उसकी प्रस्तुति को एक अनोखी पहचान दिलाई है। संतोष कुमार नाहर ने भारतीय शास्त्रीय संगीतकार बाबा भादकर नाथ के लिए भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया हैं एव वे कम उम्र में अपने दादा, ओम प्रकाश जी के संरक्षण में शहनाई और हारमोनियम सीखना शुरू किया और संगीत मार्तंड, श्री पंडित जसराज जी के छात्र भी हैं। वही सांस्कृतिक कार्यक्रम के अन्य प्रस्तुति में वडाली ब्रदर्स लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया, वडाली ब्रदर्स के एक झलक पाने के लिए डॉ. बी. आर. अंबेडकर स्टेडियम में हजारो कि संख्या में लोग पहुचें एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आनंद लिया। वडाली ब्रदर्स सूफी संत, रोमांटिक लोक गीत, ग़ज़ल, भजन और भांगड़ा पर अपनी प्रसतुतियां दी। वे फिदा साहब के कलाम से शुरू करेंगे….तुझे तकिया तो लगा मुझे ऐसे जैसे मेरी ईद हो गई …पर अपनी प्रस्तुति दी. वडाली ब्रदर्स, पंजाब के सूफी गायकों की एक प्रसिद्ध जोड़ी है जो मूल रूप से पूरनचंद जी और उनके छोटे भाई प्यारेलालजी से मिलकर बना है। पूरनचंद जी ने अपनी संगीत की शिक्षा पटियाला घराने के पंडित दुर्गा दास और उस्ताद बड़े गुलाम अली खान जैसे प्रसिद्ध आचार्यों से प्राप्त की। उन्होंने अपने बेटे लखविंदर को व्यापक शास्त्रीय संगीत प्रशिक्षण और मार्गदर्शन प्रदान किया है। उनके प्रदर्शनों की सूची में सूफी संत, रोमांटिक लोक गीत, ग़ज़ल, भजन और भांगड़ा शामिल हैं, आलाप और तान उनके संगीत के महत्वपूर्ण पहलू हैं। वे अपने पुश्तैनी घर, गुरु की वडाली में रहते हैं, और उन लोगों को संगीत सिखाते हैं जो इसे संरक्षित करने का वादा करते हैं। वे अपने छात्रों से शुल्क नहीं लेते हैं और परमात्मा को समर्पित बहुत ही सरल जीवन जीते हैं। कालसी से आय हुए पौष्टिक ग्रामोद्योग संस्था की ओर से विरासत में स्टॉल लगाया गया है जहां पर देहरादून के लोगो के लिए पहाड़ी पारंपरिक स्नैक्स, अरसे, झंगौर की बर्फी, दलिया, राजमा, मल्टीग्रेन नमकीन आदि रखा गया है जो लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। पौष्टिक ग्रामोद्योग संस्था के स्टॉल मे मौजुद महिला ने बताया कि हमारी संस्था महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है और हमारे यहां केवल महिला कर्मचारी ही काम करती है। उन्होंने बताया कि हमारा उतपाद पूरी तरह से जैविक हैं जो पहाड़ी खेतों से सीधे प्राप्त किया जाता है। इस 15 दिवसीय महोत्सव में भारत के विभिन्न प्रांत से आए हुए संस्थाओं द्वारा स्टॉल भी लगाया गया है जहां पर आप भारत की विविधताओं का आनंद ले सकते हैं। मुख्य रूप से जो स्टाल लगाए गए हैं उनमें भारत के विभिन्न प्रकार के व्यंजन, हथकरघा एवं हस्तशिल्प के स्टॉल, अफगानी ड्राई फ्रूट, पारंपरिक क्रोकरी, भारतीय वुडन क्राफ्ट एवं नागालैंड के बंबू क्राफ्ट के साथ अन्य स्टॉल भी हैं। रीच की स्थापना 1995 में देहरादून में हुई थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोत्सव का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि भारत की कला, संस्कृति और विरासत के मूल्यों को बचा के रखा जाए और इन सांस्कृतिक मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाया जाए। विरासत महोत्सव कई ग्रामीण कलाओं को पुनर्जीवित करने में सहायक रहा है जो दर्शकों के कमी के कारण विलुप्त होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृत्य, शिल्प, पेंटिंग, मूर्तिकला, रंगमंच, कहानी सुनाना, पारंपरिक व्यंजन, आदि को सहेजने एवं आधुनिक जमाने के चलन में लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इन्हीं वजह से हमारी शास्त्रीय और समकालीन कलाओं को पुणः पहचाना जाने लगा है।