देहरादून। प्रदेश में विधानसभा चुनाव निकट देख उत्तराखंड क्रांति दल एक बार फिर सक्रिय हो गया है। दल ने हल्द्वानी में पार्टी पदाधिकारियों की बैठक बुलाई है, जिसमें चुनाव की रणनीति को लेकर मंथन किया जाएगा। उत्तराखंड क्रांति दल अलग राज्य आंदोलन से उपजी पार्टी है। राज्य गठन के वक्त उत्तराखंड क्रांति दल का प्रदेश में ठीकठाक जनाधार था। वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जनता ने उक्रांद के चार प्रत्याशियों को विधानसभा तक पहुंचाया। दल ने 62 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसे कुल 6.36 प्रतिशत वोट मिले। वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में दल के तीन प्रत्याशी विधायक बने। इस चुनाव के बाद उक्रांद ने भाजपा को समर्थन देकर सरकार में भागीदारी की। इससे उक्रांद के मजबूत होने की उम्मीद जगी, लेकिन दल को सत्ता रास नहीं आई। आपसी खींचतान में दल कई धड़ों में बंट गया। इसका असर 2012 के विधानसभा चुनाव में नजर आया। दल के दो विधायक भाजपा में शामिल हो गए। ऐसे में उक्रांद का केवल एक ही प्रत्याशी विधानसभा तक पहुंचा और उसका मत प्रतिशत भी काफी कम हो गया। इस चुनाव में भी किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। ऐसे में दल के एकमात्र विधायक ने सरकार को समर्थन दिया और फिर से सत्ता में भागीदारी निभाई। हालांकि, मंत्री बनने के बावजूद इस विधायक ने दल की गतिविधियों से दूरी बनाए रखी। नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता ने दल को पूरी तरह नकार दिया। सत्ता से बाहर होने के बाद उक्रांद को फिर एका की याद आई। अब पार्टी के वरिष्ठ नेता दिवाकर भट्ट पार्टी की बागडोर संभाले हुए हैं। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी हैं। जिला स्तर पर कार्यकारिणी का गठन हो चुका है। 24-25 जुलाई को दल का वार्षिक अधिवेशन बुलाया गया है। अब रणनीति यह बनाई जा रही है कि कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाया जाए। पार्टी अध्यक्ष दिवाकर भट्ट का कहना है कि आगे की रणनीति के लिए हल्द्वानी में बैठक बुलाई गई है। इसमें आगामी कार्यक्रमों की रूपरेखा पर चर्चा की जाएगी।