देहरादून। उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के द्वारा “मछली पालन एवं स्वरोजगार साधन “ के मुद्दों पर एक ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्टी का मुख्य उद्देश उत्तराखंड के किसानों को मछली पालन से स्वरोजगार प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना एवं जागरूक करना था।
कार्यक्रम की शुरुआत सीडीएस स्वर्गीय बिपिन रावत जी व उनकी पत्नी को श्रद्धांजलि देते हुए किया गया एवं समिति के सभी सदस्यों और प्रतिभागियों ने 2 मिनट का मौन रखा।कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के महासचिव श्री जगदीश भट्ट ने कहा ’उत्तराखंड में मछली पालन स्वरोजगार और आय का उच्चतम साधन रहा है लेकिन पहले कुछ गिने-चुने किसान ही मछली पालन किया करते थे। अब नई तकनीक के माध्यम से मछली पालन आसान हो गया है और अब नदी, तालाब, झील एवं बड़े बड़े जलाशयों के अलावा हम बायोफ्लॉक तकनीक से अपने घर, आंगन या छत पर भी मछली पालन कर सकते हैं। इस बायोफ्लॉक तकनीक से हम कई ऐसे प्रजाति के मछलियों को भी पाल सकते हैं जो हमारे उत्तराखंड के वातावरण से भिन्न हो। मुख्य रूप से देखा जाए तो हम उत्तराखंड के अंदर कुछ निम्न प्रकार के मछलियों का पालन करते हैं जिसमें मिरर कॉर्प, सिल्वर कॉर्प, ग्लास कॉर्प, कतला, रोहू ,नैनी, अमूर कॉर्प, ब्राउन ट्राउट एवं महासीर शामिल है।
उत्तराखंड के मूल प्रजाति ट्राउट मछली एवं महाशीर मछली दुनिया भर में प्रसिद्ध है और इसकी कीमत भी अच्छी मिल जाती है। जो भी इच्छुक किसान मछली पालन करना चाहते हैं उनके लिए उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति हर तरह से मदद करेगी एवं उन्हें जो भी प्रादेशिक प्रजाति की मछलियों के बीज/ जिरा चाहिए वह सब अपने नेटवर्क के माध्यम से किसानों तक पहुंचाएगी।किसान चाहे तो कुछ नई तकनीको को अपनाकर हमारे प्रदेश में जितने भी बड़े-बड़े जलाशय हैं उन सब में भी मछली पालन कर सकते हैं। उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति इच्छुक किसानों को हर स्तर की ट्रेनिंग कराने के लिए तत्पर है एवं जो भी किसान चाहे उन्हें आंध्र प्रदेश, केरला, गोवा एवं महाराष्ट्र के बड़े-बड़े मछली पालक के द्वारा ट्रेनिंग भी कर सकता है।हमार उत्तराखंड मछली पालन के क्षेत्र में एक विशाल और व्यापक स्वरोजगार का साधन बन सकता है। हम देख सकते हैं कि हमारे यहां नदियों में भागीरथी, रामगंगा, अलकनंदा, कोसी, यमुना, गंगा एवं सरयू नदी है जिसके इर्द-गिर्द हम मछली पालन से स्वरोजगार पैदा कर सकते हैं। साथ ही साथ हमारे यहां जितने भी ताल-तलैया है वहां भी कुछ मूलभूत व्यवस्था में परिवर्तन कर मछली पालन किया जा सकता है। इसके अलावा बायोफ्लॉक तकनीक के साथ किसान अपने खेत- खलियानओं और अपने घर के असपास के जगहो पर सेड लगाकर मछली पालन कर सकते है।मछली के डिमांड की बात करें तो हम देख सकते है कि अपने प्रदेश में जितनी खपत मछलियों की रोजाना हो रही है उसकी आपूर्ति हमारे किसान भाई नहीं कर पाते हैं, वही हमें आंध्र प्रदेश, केरला, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश एवं अन्य कई जगहों से मछलियों का आयात करना पड़ता है। अगर हम अपने प्रदेश में मछली का पर्याप्त उत्पादन कर सके तो प्रदेश में जितनी खपत है उसके साथ साथ हम अन्य जगहों पर भी इसका निर्यात कर सकते हैं जिससे किसान भाइयों को अधिक लाभ होगा।इस कार्यक्रम में देहरादून, हरिद्वार, विकास नगर, ऋषिकेश, उधम सिंह नगर, हल्द्वानी, किच्छा, नैनीताल, अल्मोड़ा एवं बागेश्वर के साथ-साथ अन्य जगहों से भी किसानों ने भाग लिया एवं जानकारी हासिल की।कार्यक्रम में उत्तराखंड जन विकास सहकारी समिति के ओर से श्री तारा दत्त शर्मा ’ज्वाइंट सेक्रेट्री’, श्री जयदेव कैंथोला, श्री तारा दत्त भट्ट ’ट्रेजरार’, श्री गिरिजा किशोर पांडे, श्री बसंत पांडे ’एडवाइजर’ श्री महेश भट्ट एवं अन्य सदस्य मौजूद रहे।