भगवती प्रसाद गोयल
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश देते हुये कहा कि भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से ही नदियों, जल और प्रकृति के सम्मान और संरक्षण का उल्लेख किया गया है।
भारत में प्राचीन काल से ही पर्यावरण संरक्षण पर विशेष जोर दिया गया है। हम जल की पवित्रता के साथ बरगद-पीपल, तुलसी आदि पौधों की उपासना और पूजा आदि के द्वारा प्रकृति-मानव के मध्य अंतर्संबंध के विषय में चर्चा करते आये हैं।
ईशोपनिषद् के मंत्र ‘‘ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्।’’ अर्थात प्रकृति के कण कण में ईश्वर का वास है, यह सिद्धांत प्रकृति और मनुष्य में अन्योन्याश्रयी संबंधों को दर्शाता है। इस सिद्धान्त के आधार पर आत्मसंयम और अनुशासन द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग पर जोर दिया गया हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि पर्यावरण का संरक्षण हमारे सांस्कृतिक मूल्यों व परंपराओं का एक अभिन्न अंग है। अथर्ववेद में कहा गया है कि मनुष्य का स्वर्ग यहीं पृथ्वी पर है परन्तु हमने अपने यूज एंड थ्रो के कल्चर के कारण न केवल अपने लिये बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिये अनेक समस्याएँ उत्पन्न की हैं। वर्तमान समय में हमारे सामने पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या है और इसके निवारण के लिये जनसमुदाय की सहभागिता अत्यंत आवश्यक है।
अब समय आ गया है कि हम सभी को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाना होगा। माना कि वर्तमान समय में विकास और प्रकृति का संरक्षण दोनों ही मानवता की सबसे बड़ी जरूरतों के साथ-साथ चुनौतियां भी बनाकर उभरी है परन्तु हमने देखा कि विगत वर्षों में आर्थिक और सामाजिक प्रगति तो हुयी है परन्तुु पर्यावरणीय गिरावट एक वैश्विक समस्या बनकर उभरी है इसलिये अब यह जरूरी है कि विकास तो हो परन्तु पर्यावरण को केन्द्र में रखकर विकास योजनाओं को आगे बढ़ाया जाये।
स्वामी जी ने कहा कि भारत की संस्कृति अहिंसा की रही है परन्तु पर्यावरण प्रदूषण और पर्यावरण व प्रकृति को नष्ट करने वाले पदार्थों का उपयोग करना प्रकृति के साथ हिंसा का एक विकराल रूप है इसलिये अब हमें प्रकृति आधारित समाधानों को खोजना होगा ताकि हम जलवायु परिवर्तन से निपट सके और जैवविविधता भी बनी रहे। स्वामी जी ने पर्वो और त्यौहारों को पर्यावरण संरक्षण और पौधारोपण से जोड़ने का संकल्प कराया।