देहरादून। यदि किसी को याद हो तो देहरादून वही शहर है जहां कभी सडको के किनारे आम लीची के साथ ही छायादार वृक्ष हुआ करते थे, इन वृक्षो की बदोलत शहर को हरा भरा दून कहा जाता था। यहां का तापमान इतना कम रहता था कि भीषण गर्मी में भी पंखे चलाने की आवश्यकता महसूस नही हुआ करती थी। भारत के गर्म राज्यो के लोग मसूरी देहरादून में निवास करने वाले अपने रिश्तेदारो के यहां छुट्टियां मनाने आया करते थे। लेकिन उत्तराखण्ड राज्य के अस्थायी राजधानी घोषित होते ही नवम्बर 2000 से सडको के चैडीकरण का खेल खिलना शुरू हो गया और जो हरे भरे वृक्ष शहर के तापमान के साथ ही वर्षा व जल स्त्रोतो को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते थे उन्हें अविवेकपूर्ण निर्णयो के कारण काट दिया गया। सडके तो चौडी हुयी लेकिन अपने साथ जल संकट, ग्लोबल वार्मिंग का खतरा, हीट वेव साथ लेकर आयी। 24 सालो में राजधानी का तापमान इतना बढ गया कि अपने आप में इतिहास लिखने लगा। शहर का तापमान 42 डिग्री तक छू गया। दून में बढे पारे ने 122 साल पुराना कीर्तिमान स्थापित कर दिया। इतिहास बताता है कि देहरादून में वर्ष 1902 के बाद सर्वाधिक तापमान दर्ज किया गया। एक दिन पहले देहरादून का मैक्सिमम तापमान 41.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था जो 122 वर्ष में सर्वाधिक है। वर्ष 2022 में जून में पारा 41.6 डिग्री सेल्सियस पहुंचा था आॅल टाइम रिकार्ड वर्ष 1902 में 43.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
राजधानी देहरादून में चटख धूप के कारण झुलसाने वाली तपिश और लू के थपेडे शहरवासियो को बेहाल कर रहे हैं। देहरादून सहित अन्य मैदानी क्षेत्रो में आसमान से आग बरस रही है। मैक्सिमम तापमान 42 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है। मई का पूरा महीना बिना बारिश के गुजर गया। जून की शुरूआत में भी भीषण गर्मी झेली जा रही है। इस वर्ष गर्मियो में 1 मार्च से 31 मई तक प्रदेश में 128 मिमी वर्षा हुयी है। जोकि सामान्य वर्षा 159 मिमी से 19 प्रतिशत कम दर्ज की गयी है जबकि 1 जून से शुरू हुए मानसून सीजन में भी अभी तक 59 प्रतिशत वर्षा कम दर्ज की गयी है। आखिर वर्षा कम होने और देहरादून जैसे शहर में लू चलने का क्या कारण है यदि इस पर गौर करे तो पता चलेगा कि विकास के नाम पर जो हरे वृक्षो पर आरियां चलायी जा रही है यह उसी का प्रतिफल है। राजधानी बनने के बाद देहरादून का जो शहरीकरण करने की रफ्तार शुरू हुयी उसने प्रकृति के द्वारा दिए गए संसाधनो के संरक्षण के सवाल को पीछे छोड दिया। हरियाली के शहर में आज हर तरफ कंक्रीट के जंगल दिखायी दे रहे हैं। राज्य बनने के बाद 24 सालो के भीतर ही लगभग 1 लाख से अधिक पेडो पर आरियां चलायी गयी हैं यदि सरकारी आंकडो को देखे तो यह आंकडा मात्र 70 हजार की सुई पर अटका हुआ है जबकि सच्चाई इससे अलग है। जो आंकडा सरकारी है उतने पेड तो अगेले पौंधा, विकासनगर, सेलाकुई जैसे क्षेत्रो में दिखायी दे गया था। सरकारी आंकडे विश्वास के काबिल नही है यह आंकडे तो कागजो को भरने के काम आते हैं। सच्चाई पर गौर करे तो वह इससे अलग है। हरा भरा देहरादून अब कंक्रीट के जंगल में दिखाई दे रहा है जो सच्चाई को बंया करने के लिए काफी है। जो जानकारी प्राप्त हुयी है उसके अनुसान 10752 पेड दून-दिल्ली एक्सप्रेस वे प्रोजक्ट के लिए काटे गये। 6500 पेड विकासनगर-पोंटा मार्ग से काटे गये, 8000 पेड दून-पांेटा मार्ग के लिए काटे गये। 2000 पेडो पर चकराता रोड के चैडीकरण के लिए आरी चलायी गयी। जबकि 2200 पेड सहस्त्रधारा रोड पर काटे गये। बात अभी यही खतम नही होती। हरे भरे सैकडो साल पुराने जंगल को डाट काली गुफा से पहले देहरादून-सहारनपुर मार्ग विस्तारीकरण के नाम पर शहीद कर दिया गया। यहां पहले सहारनपुर जाने के लिए एक गुफा हुआ करती थी जिसे फिर डबल टरनल में बदल दिया गया और अब एक नयी टरनल बनायी जा रही है। सडक चैडीकरण के लिए हरे भरे वृक्ष बेरहमी से काटे जा रहे हैं। सडक यदि विकास की धूरी है तो पेड भी जीवनदायिनी हैं। विकास के नाम पर यदि पेडो को यूं ही काटा गया तो वह दिन दूर नही जब बूंद-बूंद पानी के लिए युद्व की नौबत आ जायेगी और शुद्व हवा न मिलने के कारण आॅक्सीजन सिलेंडर साथ लेकर घूमना पडेगा। देहरादून में सबसे पहले चकराता रोड से पेडो को साफ किया गया था इसके बाद रायपुर, सहस्त्रधारा रोड, हरिद्वार रोड, सेलाकुई, सहसपुर, हर्रावाला आदि क्षेत्रो में भी वृक्षो का वध किया गया। अब सरकार वाटर प्रोजेक्ट के नाम पर खलंगा के जंगल को भी साफ करने का क्रूचक्र रच रही है। वहीं हरिद्वार बाईपास रोड के नाम पर भी पेडो को काटन के रणनीति तैयार की जा रही है। अब बचे कूचे पेड हरिद्वार रोड पर ही थे यहां भी आने वाले दिनो में ‘कभी हुआ करते थे पेड’ लिखा जायेगा।