संजय अग्रवाल
डोईवाला- रिंकू (नाम परिवर्तित) अभी सिर्फ सात माह का था जब उसकी माँ का ध्यान उसके बढ़ते हुए पेट पर गया। शुरू में उसने इसे नजरअंदाज किया पर जब पेट निरंतर बढ़ता ही गया तो उसे चिंता हुई। कई जगह चिकित्सकों को दिखाने के बावजूद रिंकू को आराम नहीं मिला।
रिंकू की मां व परिजनों ने हिमालयन अस्पताल जॉलीग्रांट में वरिष्ठ बाल शल्य-चिकित्सक डॉ.संतोष सिंह से संपर्क किया। रिंकू की आरंभिक जांच मे उन्हें पेट मे किसी असामान्य गांठ होने का शक हुआ। जब एक्सरे किया गया तो रिंकू के पेट मे पल रहे एक मानव-भ्रूण होने का पता चला।
डॉ.संतोष सिंह ने बताया कि इसे मेडिकल भाषा मे “फ़ीटस-इन-फ़ीटू” (भ्रूण के अंदर भ्रूण) कहते हैं। रिंकू के माता-पिता को समग्र जानकारी देने के उपरांत ऑपरेशन की अस्पताल की टीम ने विस्तृत योजना बनाई गई।
डॉ.संतोष सिंह ने बताया कि पिछले सप्ताह रिंकू का सफल ऑपरेशन किया गया। उसके पेट मे से अर्ध-विकसित मानव भ्रूण को सफलतापूर्वक निकाल दिया गया। ऑपरेशन के चार दिन बाद पूर्ण रूप से स्वस्थ रिंकू को घर भेज दिया गया। उसके परिवार की खुशियां अब लौट आई है। ऑपरेशन को सफल बनाने में डॉ.आयेशा, डॉ.हरीश, डॉ.वैष्णवी, गीता व रजनी ने सहयोग दिया।
*क्या है फ़ीटस-इन-फ़ीटू ?*
हिमालयन अस्पताल जौलीग्रांट के बाल शल्य-चिकित्सक डॉ.संतोष सिंह ने बताया कि “फ़ीटस-इन-फ़ीटू” मानव भ्रूण-विकास की एक अत्यंत असामान्य घटना है। इसमें भ्रूण विकास के समय किसी अज्ञात वजह से एक भ्रूण दूसरे के अंदर विकसित होने लगता है, बिल्कुल एक परजीवी की भांति। अल्ट्रासाउन्ड से इसका पता माँ के गर्भ में ही लगाया जा सकता है हालांकि अधिकतर मामलों मे इसका पता जन्म के बाद ही चलता है।
*5,00,000 में से एक गर्भावस्था में होने की संभावना*
डॉ.संतोष कुमार ने बताया “फ़ीटस-इन-फ़ीटू” जैसे केस लगभग 5,00,000 से भी अधिक गर्भावस्थाओं मे किसी एक को हो सकता है। आमतौर पर ये एक से दो वर्ष तक की आयु मे शिशु के पेट के असामान्य तरीके से बढ़ने के कारण ही संज्ञान मे आ जाते हैं। हालांकि साधारणतया शिशु को जान का खतरा नहीं होता है, लेकिन इस वजह से अन्य गंभीर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं। इस अवस्था का एकमात्र इलाज ऑपरेशन ही है। जिसे जल्दी से जल्दी करवा लेना चाहिए। अनुभवी हाथों मे ऑपरेशन सुरक्षित व सफल है।