देहरादून। उत्तराखंड कोटद्वार क्षेत्र में हनुमान जी का प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की इच्छा पूरी होती है। सिद्धबली मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। उत्तराखंड ही नहीं विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यहां आकर मन्नत मांगते हैं। बिजनौर, मेरठ, दिल्ली व मुंबई के साथ ही कई अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालु धाम पहुंचते हैं। पवित्र सिद्धबली धाम कोटद्वार नगर से करीब ढाई किमी दूर नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर है। श्री सिद्धबली धाम की ख्याति देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक है। हर साल लाखों भक्त देश एवं विदेश से धाम पहुंचते हैं। हनुमानजी के इस मंदिर की मान्यता इतनी प्रसिद्ध है कि मंदिर में भंडारा करवाने के लिए 2025 तक बुकिंग हो चुकी है। भंडारे की एडवांस बुकिंग कराने वाले श्रद्धालु उत्तराखंड के अलावा यूपी, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र से हैं। कई एनआरआई भी हैं, जिनकी मुराद धाम में आने पर पूरी हुई है। श्री सिद्धबली धाम गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या स्थली रही है। आदिकाल में मंदिर स्थल पर सिद्ध पिंडियां थीं। 80 के दशक में मंदिर में बाबा की मूर्ति स्थापित हुई। इसके बाद ही मंदिर का सुंदरीकरण हुआ। कहा जाता है कि हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए इसी रास्ते गए थे। श्री सिद्धबली धाम कोटद्वार में बाबा की चौखट से कोई भी श्रद्धालु निराश नहीं लौटता है। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद यहां पूरी होती है। मनोकामना पूरी होते ही भक्त मंदिर में भंडारा कर हनुमान जी को भोग लगाते हैं। श्रद्धालुओं पर बजरंग बली की नेमत इस कदर बरसती है कि यहां भंडारा आयोजन के लिए भक्तों को सालों साल इंतजार करना पड़ता है। धाम में अगले सात वर्षों यानी 2025 तक भंडारों की एडवांस बुकिंग चल रही है। कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली धाम हिंदुओं की आस्था का केंद्र है। बजरंग बली जी के इस पौराणिक मंदिर का जिक्र स्कंद पुराण में भी है। श्री सिद्धबली बाबा के दर्शन को देश एवं विदेश से श्रद्धालु यहां उमड़ते हैं और मंदिर में मत्था टेककर मनोकामना मांगते हैं। बाबा अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। मुराद पूरी होने के बाद श्रद्धालु मंदिर में भंडारा कर भोग लगाते हैं। भंडारे के आयोजन के लिए मंदिर समिति की ओर से बुकिंग की जाती है। भंडारा बुकिंग काउंटर के प्रभारी सुनील बुड़ाकोटी और शैलेश कुमार जोशी बताते हैं कि रविवार, मंगलवार और शनिवार को विशेष भंडारा होता है। रविवार और मंगलवार के भंडारा आयोजन 2025 तक बुक हो चुके हैं। शनिवार के भंडारे लिए भी 2024 तक एडवांस बुकिंग हो चुकी है। अन्य दिनों के भंडारे भी 2019 तक के लिए बुक हैं। भारतीय डाक विभाग की ओर से 2008 में मंदिर के नाम डाक टिकट भी जारी किया गया था। कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरू गोरखनाथ को यहां पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है। गोरख पुराण के अनुसार, गुरू गोरखनाथ के गुरू मछेंद्र नाथ हनुमान जी की आज्ञा से त्रिया राज्य की रानी मैनाकनी के साथ रह रहे थे। जब गुरू गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरू को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े। मान्यता है कि यहां पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरू गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों में युद्ध हुआ। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर पाया, जिसके बाद बजरंग बली अपने वास्तविक रूप में आए और गुरू गोरखनाथ से वरदान मांगने को कहा। जिस पर गुरू गोरखनाथ ने हनुमान से यहां पर उनके प्रहरी के रूप में रहने की गुजारिश की। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर सिखों के गुरू गुरूनानक देव व एक मुस्लिम फकीर ने भी आराधना की थी।