महाकाल बाबा की यात्रा के अलौकिक पल

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विक्रम सिंह बिष्ट
देहरादून। सुबह तड़के 4बजे उज्जैन पहुंचने के साथ हमारे इस वर्ष के पर्यटन की शुरआत हो रही थी,शुरुआती मंजिल थी हमारी, महाकाल की भस्म आरती के टिकट लेने की, जिसके लिए हमें मन्दिर प्रांगण में स्थित टिकट Counter पर जाना था,जो खुलता तो सुबह 7 बजे से ही है , लेकिन इसके लिए सुबह तीन बजे से ही line लगनी शुरू हो जाती है,Ticket लेने के बाद हम जा रहे थे अपने Hotel की ओर,जो मंदिर प्रांगण से केवल 50 Meter की ही दूरी पर था, और अब हमारे अगले दो दिनों का आशियाना भी था,Hotel से Fresh होने के बाद हम निकल रहे थे शिव मय होकर बाबा महाकाल के दर्शनों के लिए(यहां पर तीन तरह के दर्शनों की सुविधा है,वो लोग जो बाबा महाकाल के दर्शन तो करना चाहते हैं लेकिन उनके पास समय की कमी है,ऐसे लोगों के लिए अति शीघ्र दर्शन की सुविधा है,जिसमें 1500 ₹ की रसीद कटाकर वो गर्भ गृह में जाकर आसानी से दर्शन कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए Dress Code होता है जिसका पालन करना ही होता है,पुरुषों और महिलाओं दोनो को ही Dress Code के अनुसार धोती में जाना होता है, इसी Dress Code का भी पालन प्रधान मंत्री जी ने,और श्री राहुल गांधी जी ने तब किया जब वो अभी कुछ दिन पहले ही महाकाल के दर्शन करने आए थे,दूसरे वो लोग जिन लोगों के पास 5-6घंटे का समय होता है वो 250₹ की शीघ्र दर्शन की रसीद कटाकर दर्शन कर सकते हैं,तीसरे वो जिनके पास समयाभाव नहीं होता, ऐसे लोग आम दर्शनों का आनंद लेते हैं,चूंकि मेरे पास तो यहां के लिए दो दिन का समय था,ऐसे में समयभाव की कोई कमी नहीं थी,इसलिए मैने आम दर्शन का ही रास्ता चुना)जय महाकाल बम बम भोले बोलते टेढ़ी मेढी Relings,से गुजरते शिव श्रोतों की की मधुर काव्यांजलि को सुनते,कमरों में बने बेहद खूबसूरत चित्रकारी को देखते – निहारते हम पहुंच चुके थे गर्भ गृह के नंदी द्वार में महाकाल ज्योर्तिलिंग के ठीक एकदम सामने उनसे केवल 30 फुट की दूरी पर जहां से उनका अदभुत श्रृंगार एकदम से साफ साफ दिखाई देते हुए हमें मंत्रमुग्ध भी कर रहा था श्रीमती जी तो उनके इस रूप को एकटक होकर निहारती रहीं,और मन ही मन बुदबुदाते ओठों के साथ शिव आराधना भी करती ही रहीं, (यूं तो आमतौर पर शिवलिंग उत्तरमुखी होते हैं,लेकिन यहां का ज्योर्तिलिंग दक्षिणमुखी है,इसी कारण यहां की महत्ता सबसे अलग है,और कर्क रेखा जो देश के आठ राज्यों से गुजरती है, ठीक इसी ज्योर्तीलिंग के उपर से निकलती है) इनके दर्शन करते ही एक असीम शांति के साथ साथ हमें आलोकिकता का भी साफ साफ अनुभव हुआ, यहां रहकर हमने अपने परिवार के साथ- साथ अपने स्वजनो प्रियजनों,परिचितों, इस्टमित्रों के सपरिवार स्वस्थ,निरोगी रहते हुए लंबी आयु की कामना भी की लगभग आधा घंटा गुजारने के बाद अब हम मंद-मंद कदमों के साथ बाहर निकल रहे थे,मंदिर प्रांगण में स्थित अन्य मंदिरों की श्रृंखला की ओर पूजा अर्चना करने और जलभिषेक करने को। और इन सबको पूरा करने के बाद कदम खुद ब खुद बढ़ रहे थे उस गलियारे को देखने,जिसका लोकार्पण कुछ दिन पहले ही माननीय प्रधानमंत्री जी के कर कमलों से हुआ था, 910 मीटर लंबा ये गलियारा,जिसकी अनुमानित लागत 995 करोड़ रुपए आंकी गई है, आज की शिल्प कला का एक बेजोड़ नमूना है, इसके लिए कुल 47 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया है । पास ही स्थित रूद्र सागर झील की 40 एकड़ जमीन,मंदिर की 3 एकड़ और स्थानीय लोगों की 4 एकड़ जमीन का Land Use Change कर मंदिर को सौंपा गया है, मंदिर से निकलते ही महाकाल का महालोक हमारे सामने था ,108 खंबों युक्त एक लंबी श्रृंखला,जिसके एक एक बिंदु पर,साथ की दीवारों पर, उपस्थित मूर्तियों पर शिव महिमा की अदभुत नक्काशी, लग रहा था मानो ये बोल ही उठेंगी, यहां हमे बताया गया कि इस महालोक को अगर आप रात में देखेंगे तो बेहतरीन नजारा होगा आपके सामने। ये जानकर हम निकल पड़े अपने होटल की ओर,शाम के समय यहां आने के लिए ,,। पूर्णिमा के चांद की चांदनी के बीच मंद मंद,बहती शीतल बयार के साए तले,जैसे जैसे हमारे कदम महालोक की और बढ़ रहे थे,वैसे वैसे हम रूबरू हो रहे थे,Light and Sound Show के साथ साथ शिव जी के 108 स्वरूपों की विशाल प्रतिमाओं की ओर ,जिनमे शिव के सभी रूपों को दिखाया गया है,चाहे वो कैलाश में तप करती प्रतिमा हो, हलाहल विषपान करता स्वरुप हो,गंगा जी के धरा पर आने का अवतरण हो,नटराज के स्वरूप में तांडव की मुद्रा में हों,सब के सब बेमिसाल और अदभुत थे,इनको देखकर बार बार उन शिल्पकारों के आगे श्रद्धा से नमन करने का मन कर रहा था,जिन्होंने अपनी उत्कृष्ट कला से इन विशाल प्रतिमाओं पर मानो प्राण डाल दिए हों । लगभग दो घंटे तक यूं ही सम्मोहित होने के बाद हम वापस जा रहे थे,अपने Hotel की और, अगले दिन की तैयारी करने और नींद लेने के लिए महाकाल के दर्शन और,महालोक के उस 910 मीटर लम्बे Coridor में घूमने और उससे पूरी तरह से सम्मोहित होने के बाद ये मस्तक खुद ब खुद कदम दर कदम नतमस्तक हो रहा था,उन सैकड़ों शिल्पकारों के प्रति,जिन्होंने अपनी बेजोड़ कला का सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए ,यहां की विशाल प्रतिमाओं को मानो जीवंत कर उनमें प्राण फूंक दिए हों,और जो कहीं न कहीं ये अहसास भी करा रहा था,कि हमारी वो शिल्प कला,जो हमे मंदिरों,किलों,राजमहलों में दिखाई देती थी,पहले भी बेजोड़ थी और आज भी उतनी ही बेजोड़ है ,। अगले दिनअब हम निकल रहे थे रात 2बजे महाकाल की भस्म आरती में सम्मिलित होने,जिसके कपाट सुबह 4 ही खुल जाते हैं,इसके लिए ही हमने यहां आते ही Ticket भी ले लिया था यहां हमे बताया गया कि,जितनी जल्दी आप मंदिर में पहुंचेंगे उतनी ही जल्दी आपको आगे की Seat मिल जायेगी ,जिससे आप एकदम नजदीक से भस्म आरती को होते हुए देख सकेंगे मंत्रोच्चार के बीच जब कपाट खुले,तो हमें जो Seat मिली वो ज्योर्तिलिग से 25 फुट की दूरी पर,जहां से हम बड़े आराम से पूरी प्रक्रिया देख सकते थे, शुरूआत में क्षिप्रा नदी के जल से, फिर पंचामृत से महाकाल जी को स्नान करा कर ,साफ कपड़े से उन्हे सुखा कर,पुजारी जी द्वारा उनका श्रृंगार शुरू कर दिया गया,जैसे- जैसे श्रृंगार आगे बढ़ता महाकाल की जय ,जयकारों से Hall गूंज उठता,पूरी तरह श्रृंगार होने के बाद एक अदभुत दृश्य हमारे सामने था,जिसे एकटक होकर हम देख रहे थे और मन ही मन बाबा महाकाल की स्तुति भी कर रहे थे,अब बारी मुख्य पुजारी जी की थी,जिन्होंने महाकाल जी के उपर सफेद कपड़ा लपेटा,और उसके उपर से मंत्रोचार करते हुए,पोटली में रखी भस्म से उनका अभिषेक करना शुरू कर दिया,(शुरुआत में इसके लिए चिता की भस्म चिता का प्रयोग किया जाता था, लेकिन Covid के बाद अब, जैविक तरीके से बनाई गई भस्म से ही अभिषेक होता है) यही भस्म आरती कहलाती है,लगभग दो घंटे की ये पूरी प्रक्रिया अलौकिक अहसास कराने और मंत्र मुग्ध करने वाली होती है,यहां फिर से हमने अपने परिवार के साथ-साथ अपने सभी,शुभचिंतकों, परिचितों, स्वजनों के लिए भी मंगल कामना की,और फिर धीरे धीरे निकल रहे थे,अपने होटल की और,जहां से थोड़ा विश्राम कर हमारा Ujjain घूमने का कार्यक्रम था, मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर सम्राट विक्रमादित्य का वो टीला था,जिसके बारे जन श्रुति है कि यहीं पर ही कभी उस महान सम्राट का महल था,(जिसके अब अवशेष भी नहीं बचे हैं )कुछ ही कदम पर उनकी कुल देवी माता हरसिद्धि जी का मंदिर हैं, जिनके दर्शनों के बाद हम कुछ ही दूरी पर स्थित उस जगह की और चल चल पड़े,जहां क्षिप्रा नदी के तट पर हर 12 साल बाद कुंभ का मेला लगता है,जिसे सिंहस्थ कुंभ भी कहते हैं (बृहस्पति ग्रह के हर 12 साल बाद सिंह राशि में प्रवेश करने के कारण ही ये सिंहस्थ कहलाता है उसी समय यहां कुंभ होता है) शिप्रा नदी का ये तट जिसे रामघाट भी कहते है,में मां क्षिप्रा बड़े शांत स्वर में बहती है,ऐसा लगता है, जैसे मां क्षिप्रा यहां आकर ठहर गई हो,(मां क्षिप्रा का जल हमें गंदा सा लगा जो शायद इस कारण भी नजर आया हो कि हम उत्तराखंड के लोग नदियों को उनके वास्तविक स्वरूप में देखते हैं,एकदम से निर्मल और स्वच्छ)लगभग एक घंटा रुकने के बाद हम निकल पड़े, काल भैरव जी के दर्शन करने,जिनके बारे में कहा जाता है, कि बिना इनके दर्शन किए आपकी यात्रा सफल नहीं होती , काल भैरव जी को प्रसाद में यहां मदिरा भी चढ़ाई जाती है, इनके दर्शनाें का आनंद लेने के बाद कुछ अन्य स्थल और थे , जहां हमने जाना था,संदीपनी मुनि का आश्रम,जहां भगवान श्री कृष्ण जी ने अध्यन किया था,यहीं पर वो सोलह कलाएं भी दिखाईं गईं हैं जिनमे वो पारंगत थे,इसके बाद मंगल भगवान का मन्दिर जहां पर पकाए गए चावल का लेप चढ़ाया जाता है और अंत में जंतर- मंतर और भ्रतहरी गुफा होते हुए,तीन बजे वापस होटल में, जहां विश्राम कर अपने अगले पड़ाव काशी विश्वनाथ ज्योर्तिलिंग जी के दर्शन करने काशी की ओर ।।महाकाल जी के साक्षात दर्शन,भस्म आरती में सम्मिलित होने के साथ साथ महाकाल और सम्राट विक्रमादित्य की नगरी के महत्वपूर्ण स्थलों के भ्रमण के बाद मेरी यात्रा के अब उस पहले पड़ाव की समाप्ति हो रही थी,जिसके लिए ही मैं यहां आया था Train के Ujjain से निकलने और बनारस की और जाते , मैं हाथ जोड़कर मन ही मन विदा ले रहा था महाकाल से,जिन्होंने हमें यहां बुलाया भी,और हमारे आने के मनोरथ को पूरा किया भी,

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