जीवनमुक्त,सद्गुरु,बुध्धपुरुष समभूज त्रिकोण है।।
भुशुंडिताल में पानी नहि,भुशुंडिजी के जीवन का रस है।
भुशुंडिरामायण मानस से मेरे त्रिभुवनदादा की एक स्वतंत्र सब से पहली खोज है।।
सातवे दिन,हवनाष्टमी के दिन अक्षरभूमि,निशब्द शब्दभूमि,अर्थभूमि,रसभूमि,मंगलकरनि भूमि ये स्वाभाविक अलंकारों सेयुक्त भूमि को प्रणाम करते हुए बापु ने बताया कि भूगोल जो भी कहे आज का नकशा जो भी हो मगर ये मुक्तिनाथ के एरियामें भुशुंडि नहि,भुशुंडिजी के एरिया में मुक्तिनाथ है।।
वर्णानां अर्थसंघानां रसानां छंदसामपि मंगलानां च कर्तारौ वंदे वाणिविनायकौ।।
यहां वर्ण का मतलब अक्षर और अर्थ के संघो को संगीतरुपी रस से छंद बध्धता रस की निष्पत्ति होती है।।भुशुंडिताल में पाऩी नहि,कागभुशुंडि के जीवन का रस है।।
यहां दरस,परस,मज्जन,पान महिमावंत है।।
भुशुंडि रामायण में तीन बार गान शब्द आया,पहली बार पहली काली से दूसरी बार तीसरी काली से और तीसरी बार पंचम सूर में गाया है।।मेरी खोज जारी है कि किस राग से गाया है।।प्रयास से नहि किसी के प्रसाद से खोज पूरी होगी।।
जम्मु कश्मीर से एक फौजी का खत आया तब बापू ने बताया कि हमारे आदरणीय संरक्षण मंत्री राजनाथ जी ने कहा है कि विराटशीप पर एक कथा हो,परिस्थितियां अनुकूल होने पर लेह जायेंगे।।
सदासतसंग शब्द में सदा-सत-संग का अर्थ मानस से मिलता है।।
सद्गुरु,बुध्धपुरुष और जीवनमुक्त एक समभूज त्रिकोण है।।
सद्गुरु मेंसत् विशेष,बुध्धपुरुष में करुणा अधिक,मुक्त पुरुष में प्रेम थोडा कम है।।
बापु ने लाओत्से के सूत्र बताते कहा कि अत्यंत सफलता फलदायी नहि,सम्यक रहो।रोज सफलता ये बिमारी है।।
खुद के लिए सुख की कामना सब से बडा दुख है और दुसरों के सुख का सोचना परमसुख है।।
ये १८ प्रकार की भक्तिमें:प्रेमभक्ति,अविचल भक्ति,बिमलभक्ति,श्रध्धाभक्ति,पदाब्जभक्ति,शरणभक्ति,अनुपमभक्ति,अनुपभक्ति,निरूपमभक्ति,भेदभक्ति,अविरलभक्ति,नवभक्ति,नवधाभक्ति,द्रढभक्ति,परमभक्ति,अनपायनिभक्ति,निर्बरभक्ति,अतिपावनीभक्ति,अखंडभक्ति,अभंगभक्ति,बिशुध्धभक्ति,मधुरभत्ति और विग्यानभक्ति।।सब के आधार में पमक्तियां भी है।।और हर भक्ति की युक्ति भी है वो फिर कभी।।बापु ने बताया की परिस्थितियां के कारण रुकी हूइ जनकपुर की कथा का विषय निश्चित है:मानस सियाराम पर ये मिथिला की कथा होगी।।
रामचरितमानस में भुशुंडि रामायण सब से पहले मेरे त्रिभुवनदादा ने स्वतंत्र रुप से निकाला,जो आज स्वतंत्र रूप से छप रहे है।कथाप्रवाह में राम विद्याप्राप्ति,मारिच,सुबाहु,ताडका,अहल्या उध्धार प्रसंग एवं रामविवाह और बालकांड की समाप्ति पर आज की कथा को विराम दिया गया।।
कथा पंडाल में बापु की हाजरी में जलारामबापा परिवार की ओर से सत्यनारायण कथा और हवनाष्टमी पर माताजी के रास गरबा का आयोजन।।
जलारामबापा परिवार,रघुरामबापा,भरतभाइ और पूरा परिवार कथा पंडाल में आज शाम सत्यनारायण जी की पूजा और कथा और पूरी गुजराती परंपरा से प्रसाद का आयोजन हुआ फिर मोरारिबापु की उपस्थिति में ही रास-गरबा माताजी की नवरात्र के अष्टमी की रात पर स्तुति,गरबा का आयोजन हुआ।
पूरा नेपाल जैसे गरबे के ताल पर झूम उठा।।